रॉडिया टेप प्रकरण को दफनाने का असफल प्रयास
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रॉडिया टेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा स्टेंड ले लिया है। अदालत ने नीरा रॉडिया
के औद्योगिक घरानों के प्रमुखों, नेताओं और दूसरे व्यक्तियों की टेप की गई बातचीत से
मिली जानकारी के आधार पर पांच साल तक कोई कार्रवाई नहीं करने पर आयकर विभाग और सीबीआई
को आड़े हाथों लिया। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति वी. गोपाल गौड़ा की खंडपीठ
ने कहा कि यह अच्छी स्थिति नहीं है। अदालत ने कहा कि यह बातचीत पांच साल पहले टेप की
गई थी लेकिन इस दौरान सरकारी अधिकारी चुप्पी साधे रहे। न्यायाधीश जानना चाहते थे कि
क्या वे कार्रवाई के लिए अदालत के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं? अदालत ने आयकर विभाग
को रॉडिया के टेलीफोन टेप करने के लिए अधिकृत किए जाने से संबंधित सारा रिकार्ड पेश
करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने आयकर विभाग को यह भी स्पष्ट करने का निर्देश दिया
कि टेपिंग की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों को सौंपी गई थी क्या उन्होंने रिकार्डिंग के
विवरण के बारे में अपने वरिष्ठ अफसरों को सूचित किया और इस बातचीत में जिन आपराधिक
मामलों का जिक्र हुआ है क्या उनके बारे में सीबीआई को सूचित किया गया था? वित्तमंत्री
को 16 नवम्बर 2007 को मिली एक शिकायत के आधार पर नीरा रॉडिया के फोन की निगरानी के
दौरान यह बातचीत रिकार्ड की गई थी। इस शिकायत में आरोप लगाया गया था कि नौ साल के भीतर
ही रॉडिया ने तीन सौ करोड़ रुपए का कारोबार उद्योगपतियों और मंत्रियों के सहयोग और
पत्रकारों की मदद से खड़ा कर लिया है। सीबीआई ने पिछली तारीख में सुप्रीम कोर्ट से
कहा कि वह न्यायालय के निर्देशों पर कुछ मामलों में केस दर्ज कर सकती है क्योंकि नीरा
रॉडिया की औद्योगिक घरानों के प्रमुखों, नेताओं और दूसरे व्यक्तियों के साथ रिकार्ड
की गई वार्ता से आपराधिकता का पता चलता है। अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत
द्वारा नियुक्त छह सदस्यीय जांच दल की रिपोर्ट से उपजे 10 बिन्दुओं के अंश पढ़ते हुए
कहा कि पहली नजर में कुछ पहलुओं पर संदेह होता है जिसके लिए सीबीआई को प्रारम्भिक जांच
के लिए मामला दर्ज करना होगा। न्यायालय ने टेलीफोन पर बातचीत के कथित आपत्तिजनक विवरण
को लेकर आयकर विभाग तथा दूसरे विभागों की निक्रियता पर भी आश्चर्य व्यक्त किया। न्यायाधीशों
ने कहा कि हम यह जानकर आश्चर्यचकित हैं कि यह बातचीत वरिष्ठ अधिकारियों के पास उपलब्ध
थी लेकिन विलम्ब ने इस मामले को लगभग निरर्थक बना दिया है। यदि उच्च अधिकारियों के
साथ इसे साझा किया गया होता तो आज स्थिति भिन्न होती क्योंकि यह गम्भीर मामले हैं।
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीपी मल्होत्रा ने कहा कि भारतीय टेलीग्राफिक
कानून के तहत रॉडिया के फोन की बातचीत रिकार्ड करने के लिए गृह सचिव से मंजूरी ली गई
थी। न्यायाधीशों ने कहा कि अधिकृत किए जाने और मंजूरी को लेकर कोई समस्या नहीं है।
आज एएसजी हमें यह बताएं कि क्या जो अधिकारी
बातचीत सुनने के लिए अधिकृत थे ने गृह सचिव के साथ यह सूचना साझा की या नहीं? जिस तरीके
से सुप्रीम कोर्ट इस मामले को लेकर गम्भीर है उससे तो नहीं लगता कि अब यह मामला दब
जाएगा। हालांकि इस पूरे प्रकरण को दबाने में बहुत लोग दिलचस्पी ले रहे हैं।
-अनिल नरेन्द्र
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